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अंताकर्म को संयमित करके रखने का नाम ही एकादशी : आनंदमूर्ति गुरु मां है

अंताकर्म को संयमित करके रखने का नाम ही एकादशी : आनंदमूर्ति गुरु मां है

बटाला/ गन्नौर 10 जुलाई (शर्मा ) : आज आनंद मूर्ति गुरु मां द्वारा आश्रम गन्नौर में हिरदे संवाद की शुरुवात अपनी मदर मीठी वाणी से करते हुए आषाढ़ महीने से परीचित कराते हुए कहा की आज फागन तिथि है बहुत लोग इस बात से जो परिचित नहीं है वह जानेंगे कि चातुर्मास का प्रारंभ आज से हो जाता है पुराने समय में यह समय 4 महीने महात्मा लोग एक ही जगह रहते थे और वही अपनी तपस्या करना वही वह लोग अपनी साधना करते थे क्योंकि पुराने समय में बरसात में सफर करना मुश्किल होता था कि पैदल चलते हैं और रास्ते में कहीं ठिकाना करना भी मुश्किल हो जाएगा इसलिए एक ही स्थान पर रह करके तब का प्रावधान होता था एक तरह से जो श्रद्धालु है जो सत्संगी है उनके लिए भी लाभ होता था कि अगले 4 महीने वह संत वही है तो रोज दर्शन पर्सन की सेवा का अवसर जो है वह सबको मिल जाता था वैष्णव में आज का दिन बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण होता है आज के दिन उपवास अवश्य रखते हैं और यह सुनिश्चित किया गया कि एकादशी में फलाहारी पर रहे और अपने संकल्प से सिर्फ गर्म जल पर रहे तो उसका जो स्वास्थ्य लाभ है क्योंकि व्रत में फलाहारी के नाम पर इतने पदार्थ खाए जाते हैं जो शायद आम दिन में भी नहीं खाए जाते तो वह पूरा जो लक्ष्य है उपवास खत्म हो जाता है । आज जो है ऐसे एकादश का मतलब दस और एक ज्ञान कर्म इंद्री और एक हमारा अंताकरन को संयमित करके रखने का दिन एकादशी है । अगर अपने इंद्रियों का निराकरण नहीं रखा , रोटी नहीं खाई तो इतने से उपवास नहीं हो जाता अपनी इंद्रियों को बहिमुर्खी ना होने दें अपने मन को बहिर्मुखी ना होने दें , आने वाले कल की चिंता ना करें यह हुआ आपके मन का संयम और अपनी इंद्रियों को आज के दिन के लिए छुट्टी दे केवल खाना नहीं पीना नहीं घूमना नहीं व्यर्थ हाथ से कुछ और भी नहीं करना अधिक समय जो परिवार के दूसरे लोगों का जो भी भोजन आदि का प्रबंध वह सब कर दिया लेकिन स्वयं जो है वह निराहार रहे सिर्फ मुंह से ना खाना निराहार नहीं होता है। कई लोगों का पूरा जो समय जून से शुरू हुआ सितंबर तक तो चार धाम की यात्रा है अमरनाथ की यात्रा है सब यात्राएं खुल जाती है लेकिन जब मैं देखती हूं तो वह त्याग तपस्या के लिए बिल्कुल घर से बाहर नहीं जा रहा है घर से बाहर निकलते ही कोन से ढाबे पर खाना के खाएंगे यहां यह करेंगे वहां वह करेंगे तीर्थ पर भी ध्यान ना उस पर है नारायण नारायण कवच विष्णु नाम का होगा उसका वर्णन करके लोगों को दिखाएंगे तो वह उपवास का या निराहार रहने का या तीर्थ का जो वह पूरा लक्ष्य है ना वह लक्ष्य खराब हो गया बद्रीनाथ, केदारनाथ जैसी सुंदर जगह और क्या होगी वह जगह सिर्फ फोटो खींच के सोशल मीडिया पर पॉपुलर हो जाए उसके लिए नहीं है एकादशी जैसा नियम पालन करने और अपनी इंद्रियां को शांत रख सकें । आप अपने मन को शांत रखते हो आप का मंत्र जप करते हो। अगर आप दिल्ली मेरठ कोलकाता कहीं भी हैं और आपने अपने घर में आसन भी छाया रीड की हड्डी सीधी करी नेत्र किए बंद तो फिर तुम घर में हो मुंबई में हो कि केदारनाथ में हो कोई फर्क नहीं अब मन एकाग्र हो गया और आपने धारण की अपने शिव की अपने मन में देखिए ।

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